Media Report:Live 9 Aug. 2018 बिहार के तीन लाख सत्तर हजार नियोजित शिक्षकों की इंतजार की घड़ी लंबी होती जा रही है।समान काम समान वेतन पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को भी सुनवाई पूरी नहीं हो सकी। कोर्ट ने अब मंगलवार यानि 14 अगस्त की तारीख सुनवाई के लिए तय की है।
_आज माननीय सर्वोच्च न्यायालय में *"समान काम समान वेतन"* के बहस का एक दौर समाप्त हुआ। शिक्षकों की ओर से पी. एस.सुंदरम अपना पक्ष रखे। उन्होंने आज के कुल 55 मिनट के अपने बहस के क्रम में माननीय न्यायधीश महोदय को यह कन्विंस करने में सफल रहे कि सभी शिक्षक एक ही चारदीवारी के अंदर कार्य करते हैं,अर्थात कार्यस्थल एक ही है, सभी शिक्षकों की योग्यता समान है,एक ही पाठ्यक्रम है जो सभी शिक्षकों के द्वारा पढ़ाया जाता है..... फिर वेतन में असमानता क्यों? ऐसा करना संविधान के अनुच्छेद 21A एवं 14 के विरुद्ध है। भारत का संविधान इस तरह की असमानता की इजाजत नहीं देती है। राज्य के प्रत्येक बच्चों को शिक्षा देना राज्य का संवैधानिक दायित्व है। अतः इस दायित्व को पूरा करना ही संवैधानिक प्रावधानों का संरक्षण होगा।_
_संवैधानिक प्रावधानों का आदर करना राज्य का पुनीत कर्तव्य है।इसके लिए शिक्षक अपने वेतन का आधे से अधिक भाग से क्यों वंचित रहे? ऐसा करना राज्य द्वारा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के साथ खुलम खुल्ला मजाक है। उन्होंने कहा कि यदि राज्य सरकार द्वारा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने में आर्थिक कठिनाई है तो राज्य केंद्र से आर्थिक सहयोग प्राप्त करके शिक्षा के अधिकार कानून के अनुरूप गुणवत्तापूर्ण शिक्षा बिहार के सभी बच्चों को उलब्ध करावे जिससे बिहार में राजनैतिक, बौद्धिक,सामाजिक ,आर्थिक समानता कायम रह सके। दोनों न्यायधीश महोदय पी.एस. सुंदरम साहब के एक एक तर्क से पूरी तरह सहमत थे ।_
_*"समान काम समान वेतन"* भारतीय संविधान द्वारा भारत के नागरिकों को दी जानेवाली एक संवैधानिक अधिकार है तथा संविधान के मूल अवधारणाओं का अभिन्न अंग है। शिक्षकों के पक्ष को रखते हुए उन्होंने सरकार के अधिवक्ताओं द्वारा जाप किए जा रहे डाईंग कैडर को भी उन्होंने परिभाषित किया। उससे भी माननीय न्यायाधीश महोदय काफी संतुष्ट दिखे। आज का अंतिम कुल 55 मिनट का बहस बिल्कुल तर्कपूर्ण संवैधानिक, सामाजिक,राजनैतिक,शैक्षिक,बौद्धिक और भारतीय दर्शन की मूल अवधारणा के अनुरूप रहा। शिक्षकों की ओर से बहस की शुरुआत बहुत ही जोरदार ढंग से सकारात्मक,तार्किक,संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप शुरू की गई। पूरे कोर्ट परिसर का माहौल बिल्कुल पिन ड्रॉप साइलेंस था। सुंदरम साहब प्रफुल्लित होकर हसंते अपने तर्क प्रस्तुत कर रहे थे और न्यायधीश महोदय जगह-जगह पर क्रॉस कर रहे थे। उसका जवाब आदरणीय अधिवक्ता तर्कपूर्ण तरीके से दे रहे थे। बहस बिल्कुल सही दिशा में जा रही है। उन्होंने पटना हाई कोर्ट के आदेश को लागू कराने के लिए अपनी तर्कपूर्ण विद्वतापूर्ण एवं संवैधानिक प्रावधानों के तहत बहस की शुरुआत की।_
_*बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ* एवं अन्य शिक्षक संगठनों की एकता कोर्ट परिसर में अद्भुत परिदृश्य प्रस्तुत कर रहा था। समान काम समान वेतन मुद्दे पर सभी शिक्षक एक सूत्र में बंधे हुए हैं ।सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि शिक्षकों की ओर से सुप्रीम कोर्ट के जाने-माने अधिवक्ताओं की एक लंबी सूची है जो बहस में भाग ले रहे हैं और लेंगे। अभी बहस की शुरुआत हुई है । अगले मंगलवार अर्थात 14 अगस्त को भी बहस जारी रहेगी........जिसमें सुंदरम साहब के अलावे अन्य वरिष्ठ अधिवक्ता बहस में भाग लेंगे और शिक्षकों का पक्ष रखेंगे। बहस में बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी,सी.एस.वैद्यनाथन, रंजीत कुमार सिंह, अभय कुमार, के अलावे अन्य पक्षकारों की ओर से कपिल सिब्बल ,सलमान खुर्शीद, राजीव धवन, संजय हेगड़े,प्रशांत भूषण सहित दर्जनों अधिवक्ताओं द्वारा शिक्षकों के पक्ष को रखेंगे जो इस बहस के अवसर पर प्रत्येक दिन कोर्ट परिसर में आवश्यकतानुसार उपस्थित रहे हैं । बहस की शुरुआत और कोर्ट परिसर के माहौल से ऐसा प्रतीत होता है कि बहस तार्किक ,सकारात्मक, उतसाहवर्धक एवं पटना हाई कोर्ट के आदेश के अनुरूप हैं
मौके पर कोर्ट परिसर में बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष -सह-विधान पार्षद श्री केदार ना. पांडेय, महासचिव-सह-पूर्व सांसद माननीय श्री शत्रुघ्न प्रसाद सिंह,संयुक्त सचिव डॉ.अरुण कु.यादव,विनय मोहन, डॉ मृत्युंजय,सुबोध कुमार ,प्रवीण कुमार, राजीव कुमार"पप्पू", अजीत कुमार , डॉ. सुदर्शन कुमार, सुरेंद्र कुमार, आलोक रंजन,सिद्धार्थ शंकर सहित सभी पक्षकारों की ओर से सम्मानित शिक्षक साथी इस अवसर पर उपस्थित थे।
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार के वकील से पूछा कब तक आप नियोजित शिक्षकों को असमान वेतन देते रहेंगे, कब सुधरेगी आपकी आर्थिक स्थिति? कोर्ट ने ये भी पूछा कि नियोजित शिक्षकों को प्रमोशन की नियमावली है या नहीं इस बारे में बिहार सरकार के वकील ने कहा कि मुझे इस सिलसिले में कोई जानकारी नहीं है। हालांकि आज की सुनवाई लंबी नहीं खिंच सकी ।
इससे पहले बुधवार को भी बिहार सरकार ने कोर्ट के सामने एक बार फिर बिहार सरकार ने समान काम समान वेतन देने पर अपनी लचारी जतायी थी। सरकार ने फिर से अपनी आर्थिक स्थिति का हवाला दिया । इसके बाद कोर्ट ने बिहार सरकार को फटकार लगायी। कोर्ट ने कहा वित्तीय प्रबंधन करना राज्य सरकार का काम है। हालांकि सरकार ने इस मामले पर अपने हाथ खड़े कर दिए हैं।
कोर्ट में पूर्व में सौंपी गई रिपोर्ट में राज्य सरकार ने यह कहा है कि वह प्रदेश के नियोजित शिक्षकों को महज 20 फीसद की वेतन वृद्धि दे सकती है। वह भी विशेष परीक्षा पास करने के बाद।
ऐसे में इस बात की पूरी संभावना व्यक्त की जा रही है कि अगर इन्हें समान काम, समान वेतन का लाभ नहीं भी मिलता है, तो भी इनके वेतन में 30 से 40 फीसदी तक की बढ़ोतरी होनी तय है। परंतु पूरा मामला इन्हें वेतनमान देने के मसले पर आकर फंसता है, जिसके लिए न तो केंद्र सरकार तैयार है और न ही राज्य सरकार।
नियोजित शिक्षकों में लगभग तीन लाख उन्नीस हजार शिक्षक प्रारंभिक शिक्षक हैं। इसमें 66 हजार शिक्षकों का वेतन बिहार सरकार पूरी तरह से अपने मद से देती है। जबकि, दो लाख 53 हजार शिक्षकों का वेतन सर्व शिक्षा अभियान के माध्यम से दिया जाता है।
इनके वेतन में 60 फीसदी रुपये केंद्र और 40 फीसदी रुपये राज्य सरकार देती है। सिर्फ नियोजित शिक्षकों की सैलरी पर अभी राज्य सरकार करीब 11 हजार करोड़ रुपये सालाना खर्च करती है। इसके अलावा केंद्र से भी 22-23 हजार करोड़ रुपये सैलरी समेत अन्य कार्यों के लिए एसएसए के अंतर्गत राज्य को प्राप्त होते हैं।
पिछले साल अक्टूबर महीने में पटना हाईकोर्ट ने नियोजित शिक्षकों के हक में फैसला दिया था और सरकार को कहा था कि वह नियोजित शिक्षकों को नियमित शिक्षकों की भांति समान सुविधा दे। जिसके बाद राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में गयी थी।
_आज माननीय सर्वोच्च न्यायालय में *"समान काम समान वेतन"* के बहस का एक दौर समाप्त हुआ। शिक्षकों की ओर से पी. एस.सुंदरम अपना पक्ष रखे। उन्होंने आज के कुल 55 मिनट के अपने बहस के क्रम में माननीय न्यायधीश महोदय को यह कन्विंस करने में सफल रहे कि सभी शिक्षक एक ही चारदीवारी के अंदर कार्य करते हैं,अर्थात कार्यस्थल एक ही है, सभी शिक्षकों की योग्यता समान है,एक ही पाठ्यक्रम है जो सभी शिक्षकों के द्वारा पढ़ाया जाता है..... फिर वेतन में असमानता क्यों? ऐसा करना संविधान के अनुच्छेद 21A एवं 14 के विरुद्ध है। भारत का संविधान इस तरह की असमानता की इजाजत नहीं देती है। राज्य के प्रत्येक बच्चों को शिक्षा देना राज्य का संवैधानिक दायित्व है। अतः इस दायित्व को पूरा करना ही संवैधानिक प्रावधानों का संरक्षण होगा।_
_संवैधानिक प्रावधानों का आदर करना राज्य का पुनीत कर्तव्य है।इसके लिए शिक्षक अपने वेतन का आधे से अधिक भाग से क्यों वंचित रहे? ऐसा करना राज्य द्वारा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के साथ खुलम खुल्ला मजाक है। उन्होंने कहा कि यदि राज्य सरकार द्वारा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने में आर्थिक कठिनाई है तो राज्य केंद्र से आर्थिक सहयोग प्राप्त करके शिक्षा के अधिकार कानून के अनुरूप गुणवत्तापूर्ण शिक्षा बिहार के सभी बच्चों को उलब्ध करावे जिससे बिहार में राजनैतिक, बौद्धिक,सामाजिक ,आर्थिक समानता कायम रह सके। दोनों न्यायधीश महोदय पी.एस. सुंदरम साहब के एक एक तर्क से पूरी तरह सहमत थे ।_
_*"समान काम समान वेतन"* भारतीय संविधान द्वारा भारत के नागरिकों को दी जानेवाली एक संवैधानिक अधिकार है तथा संविधान के मूल अवधारणाओं का अभिन्न अंग है। शिक्षकों के पक्ष को रखते हुए उन्होंने सरकार के अधिवक्ताओं द्वारा जाप किए जा रहे डाईंग कैडर को भी उन्होंने परिभाषित किया। उससे भी माननीय न्यायाधीश महोदय काफी संतुष्ट दिखे। आज का अंतिम कुल 55 मिनट का बहस बिल्कुल तर्कपूर्ण संवैधानिक, सामाजिक,राजनैतिक,शैक्षिक,बौद्धिक और भारतीय दर्शन की मूल अवधारणा के अनुरूप रहा। शिक्षकों की ओर से बहस की शुरुआत बहुत ही जोरदार ढंग से सकारात्मक,तार्किक,संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप शुरू की गई। पूरे कोर्ट परिसर का माहौल बिल्कुल पिन ड्रॉप साइलेंस था। सुंदरम साहब प्रफुल्लित होकर हसंते अपने तर्क प्रस्तुत कर रहे थे और न्यायधीश महोदय जगह-जगह पर क्रॉस कर रहे थे। उसका जवाब आदरणीय अधिवक्ता तर्कपूर्ण तरीके से दे रहे थे। बहस बिल्कुल सही दिशा में जा रही है। उन्होंने पटना हाई कोर्ट के आदेश को लागू कराने के लिए अपनी तर्कपूर्ण विद्वतापूर्ण एवं संवैधानिक प्रावधानों के तहत बहस की शुरुआत की।_
_*बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ* एवं अन्य शिक्षक संगठनों की एकता कोर्ट परिसर में अद्भुत परिदृश्य प्रस्तुत कर रहा था। समान काम समान वेतन मुद्दे पर सभी शिक्षक एक सूत्र में बंधे हुए हैं ।सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि शिक्षकों की ओर से सुप्रीम कोर्ट के जाने-माने अधिवक्ताओं की एक लंबी सूची है जो बहस में भाग ले रहे हैं और लेंगे। अभी बहस की शुरुआत हुई है । अगले मंगलवार अर्थात 14 अगस्त को भी बहस जारी रहेगी........जिसमें सुंदरम साहब के अलावे अन्य वरिष्ठ अधिवक्ता बहस में भाग लेंगे और शिक्षकों का पक्ष रखेंगे। बहस में बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी,सी.एस.वैद्यनाथन, रंजीत कुमार सिंह, अभय कुमार, के अलावे अन्य पक्षकारों की ओर से कपिल सिब्बल ,सलमान खुर्शीद, राजीव धवन, संजय हेगड़े,प्रशांत भूषण सहित दर्जनों अधिवक्ताओं द्वारा शिक्षकों के पक्ष को रखेंगे जो इस बहस के अवसर पर प्रत्येक दिन कोर्ट परिसर में आवश्यकतानुसार उपस्थित रहे हैं । बहस की शुरुआत और कोर्ट परिसर के माहौल से ऐसा प्रतीत होता है कि बहस तार्किक ,सकारात्मक, उतसाहवर्धक एवं पटना हाई कोर्ट के आदेश के अनुरूप हैं
मौके पर कोर्ट परिसर में बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष -सह-विधान पार्षद श्री केदार ना. पांडेय, महासचिव-सह-पूर्व सांसद माननीय श्री शत्रुघ्न प्रसाद सिंह,संयुक्त सचिव डॉ.अरुण कु.यादव,विनय मोहन, डॉ मृत्युंजय,सुबोध कुमार ,प्रवीण कुमार, राजीव कुमार"पप्पू", अजीत कुमार , डॉ. सुदर्शन कुमार, सुरेंद्र कुमार, आलोक रंजन,सिद्धार्थ शंकर सहित सभी पक्षकारों की ओर से सम्मानित शिक्षक साथी इस अवसर पर उपस्थित थे।
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार के वकील से पूछा कब तक आप नियोजित शिक्षकों को असमान वेतन देते रहेंगे, कब सुधरेगी आपकी आर्थिक स्थिति? कोर्ट ने ये भी पूछा कि नियोजित शिक्षकों को प्रमोशन की नियमावली है या नहीं इस बारे में बिहार सरकार के वकील ने कहा कि मुझे इस सिलसिले में कोई जानकारी नहीं है। हालांकि आज की सुनवाई लंबी नहीं खिंच सकी ।
इससे पहले बुधवार को भी बिहार सरकार ने कोर्ट के सामने एक बार फिर बिहार सरकार ने समान काम समान वेतन देने पर अपनी लचारी जतायी थी। सरकार ने फिर से अपनी आर्थिक स्थिति का हवाला दिया । इसके बाद कोर्ट ने बिहार सरकार को फटकार लगायी। कोर्ट ने कहा वित्तीय प्रबंधन करना राज्य सरकार का काम है। हालांकि सरकार ने इस मामले पर अपने हाथ खड़े कर दिए हैं।
कोर्ट में पूर्व में सौंपी गई रिपोर्ट में राज्य सरकार ने यह कहा है कि वह प्रदेश के नियोजित शिक्षकों को महज 20 फीसद की वेतन वृद्धि दे सकती है। वह भी विशेष परीक्षा पास करने के बाद।
ऐसे में इस बात की पूरी संभावना व्यक्त की जा रही है कि अगर इन्हें समान काम, समान वेतन का लाभ नहीं भी मिलता है, तो भी इनके वेतन में 30 से 40 फीसदी तक की बढ़ोतरी होनी तय है। परंतु पूरा मामला इन्हें वेतनमान देने के मसले पर आकर फंसता है, जिसके लिए न तो केंद्र सरकार तैयार है और न ही राज्य सरकार।
नियोजित शिक्षकों में लगभग तीन लाख उन्नीस हजार शिक्षक प्रारंभिक शिक्षक हैं। इसमें 66 हजार शिक्षकों का वेतन बिहार सरकार पूरी तरह से अपने मद से देती है। जबकि, दो लाख 53 हजार शिक्षकों का वेतन सर्व शिक्षा अभियान के माध्यम से दिया जाता है।
इनके वेतन में 60 फीसदी रुपये केंद्र और 40 फीसदी रुपये राज्य सरकार देती है। सिर्फ नियोजित शिक्षकों की सैलरी पर अभी राज्य सरकार करीब 11 हजार करोड़ रुपये सालाना खर्च करती है। इसके अलावा केंद्र से भी 22-23 हजार करोड़ रुपये सैलरी समेत अन्य कार्यों के लिए एसएसए के अंतर्गत राज्य को प्राप्त होते हैं।
पिछले साल अक्टूबर महीने में पटना हाईकोर्ट ने नियोजित शिक्षकों के हक में फैसला दिया था और सरकार को कहा था कि वह नियोजित शिक्षकों को नियमित शिक्षकों की भांति समान सुविधा दे। जिसके बाद राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में गयी थी।



Jarur milega
ReplyDeleteहमारी शिक्षा व्यवस्था ने
ReplyDeleteबिना पुछे एक कोर्स
लागू कर दिया है;
जिसे घूसखोरी बोलो
या भ्रष्टाचार l
इतनी सरल की
पढ़ना नहीं पड़ता
कॉपी-कलम खर्च
करना नहीं परता,
बस;
स्कूल –कॉलेजों से
जो भी देख कर गया,
गाँव –घर चौक –चौराहे
पर सुना और सुनाया,
इसी में ,
सारे बच्चे निपुन हो गये ,
फिर !
जो भी बनते ,
पुलिस ,अफसर,नेता, मंत्री,
डॉक्टर या समाज सेवी,
ये पढाई सभी को पसंद है ,
अतः
इस विषय को फैलाते हैं l
आश्चर्य की बात है i
कैसे गुरु के पास ;
रहते हैं बच्चे,
और इस विषय में
कभी फेल नहीं होते ।
जनता की खामोशी कहती है ।
वर्तमान क्या देखते हो,
भविष्य देखना ,
कितना उज्ज्व होगा l
हमारी शिक्षा व्यवस्था ने
बिना पुछे एक कोर्स
लागू कर दिया है l
जिसे घूसखोरी बोलो
या भ्रष्टाचार
इसलिए मैं, चिंतित हूँ ;व्यथित हूँ;
दुख –दर्द -से पिड़ित हूॅ
क्योंकि
जनता को होने वाला है;
एक नया अनुवांशिक रोग .
जो देस को जलाएगा ।
9709527169
भारतीय जन लेखक संघ
सचिव ।